Sunday, October 7, 2012

आदमी का स्वप्न


"...मनु नहीं, मनु पुत्र है यह सामने, जिसकी
कल्पना की जीभ में भी धार होती है
बाण ही नहीं होते विचारों के केवल
स्वप्न के भी हाथ में तलवार होती है..."
                                                   -रामधारी सिंह 'दिनकर'










अभी कितनी दूर है वह पहाड़ी
जिस तक पहुँचती सड़क
अभी बनी नहीं है -
सड़क - जिसकी कंक्रीट
अभी धरती की ओट में सो रही है,
जिसकी कंक्रीट, अभी कंक्रीट नहीं
सिर्फ रेत, सिर्फ चूना है,
जिसकी कंक्रीट के ऊपर
पहाड़ी से रिसता पानी
अभी भी चुपचाप बहता है

और कितनी दूर है वह पहाड़ी
जहां बस कल ही
मंदिरों के दर्शन के लिए
टूरिस्टों - और तीर्थयात्रियों - के जत्थे पहुंचेंगे -
मंदिर - जो अभी लताओं/ और फूलों की
गर्द में दबें हैं,
जिनके पत्थरों की अभी
ताजपोशी नहीं हो पाई है,
जिनमें उग रहे
सालों पुराने तरुओं की छाल का रंग
अभी चढ़ाई गयी चुन्नियों से
लाल नहीं हुआ है,
मंदिर - जिनमें अभी भी ईश्वर का वास है

बस आ ही गयी है वह पहाड़ी
जिसकी ढलानों को काट कर
रोज़गार के नए आयामों की खोज में
आधुनिक
रेसोर्ट बनाया जाएगा -
रेसोर्ट - जो घाटी में झांकता 
सीमेंट के चार पुश्तों पर
बहुत दिलेरी से खड़ा रहेगा,
जो अभी कागज़ों के बंडलों में बंधा
तीन सरकारी कार्यालयों में
पांच मुख्य अभियंताओं की प्रतीक्षा कर रहा है,
जिसके बनने के पश्चात/
विशेषज्ञों की राय में
यह पहाड़ी
इंजीनियरिंग का अप्रतिम नमूना कहलाएगी -

भोर होने से ज़रा पहले
इस पहाड़ी के पीछे छिपकर
घबराया सा
देख रहा है एक सूरज
आदमी का ये स्वप्न

स्वप्न - जो पूछता है बारबार
और कितनी दूर है वह पहाड़ी?
और कितनी दूर है वह सूरज?