फिर, चित्तकबरी धूप में
छाँव ढूंढती है ज़िन्दगी,
समय की कल-कल में फिर
एक पड़ाव ढूँढती है ज़िन्दगी
फुटपाथ से रुख्सत होती धूप की
कुछ मूक अर्जियों में
कोई आस ढूँढती है ज़िन्दगी,
कढ़ी हुई चाय की सुड़कियों के बीच
पकी शक्कर की कड़वी महक में
वही पुरानी प्यास ढूँढती है ज़िन्दगी
ठिठुरती शाम के कागार पर बैठ
चुपचाप कुछ सोच रही गर्माहट का
एहसास ढूँढती है ज़िन्दगी,
चमचमाती गाड़ियों पर जम रही
मरम्मत की धूल में
कण-कण संवरता
बिखरता/ इतिहास ढूँढती है ज़िन्दगी,
इश्तिहारों, विचारों, गुनाहगारों, रोज़गारों में
रोजाना के इत्तेफ़ाकों के व्यापारों में
अपना ही परिहास ढूँढती है ज़िन्दगी
प्रेम के अल्फ़ाज़ों में/ छटपटाते दरवाज़ों में
किसी पुरानी फ़िल्म के गीत सा
ठहराव ढूँढती है ज़िन्दगी,
तेरी आँखों के पैमाने में, फिर
कोई मृदु भाव ढूँढती है ज़िन्दगी/
इस अकेली तालाश में
खुद से ही जूझती है
ज़िन्दगी
फिर, चित्तकबरी धूप में
छाँव ढूंढती है ज़िन्दगी.
"इश्तिहारों, विचारों, गुनाहगारों, रोज़गारों में
ReplyDeleteरोजाना के इत्तेफ़ाकों के व्यापारों में
अपना ही परिहास ढूँढती है ज़िन्दगी..."
i LOVE these lines...way to go Skand!
Thank you Scribbler! Do I happen to know you? :)
ReplyDelete*I repeat* This reminded me of stuff like "baadal ko ghirte dekha hai" ^_^ Sublime!
ReplyDeletebeautiful poem.
ReplyDeletekeep writing !
i will be waiting in anticipation for the next post
Thank you nainy!
ReplyDeleteman mein chupe kuch alfaaz,
ReplyDeletekisi aur k mukh se sunati hai zindagi,
jo chahta tha khud kisi din kore kagaz par likhna
use kahi aur likha hua dikhati hai zindagi !!
Beautifully written...I too once had similar feelings about life...wanted to write on it but never did...was immensely happy after reading this...keep writing...my best wishes :)
Thank you Dibyayan! Its always nice to have someone empathizing. :)
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